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नेहरू बाल पुस्तकालय >> मां के समान और कौन

मां के समान और कौन

रोहन गोगोई

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6231
आईएसबीएन :9788123748092

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किसी गांव में एक महिला रहती थी। उसका एक बेटा था। बेटे के अलावा उसका और कोई नहीं था।...

Man Ke Saman Aur Kaun A Hindi Book by Kengsam Keglam

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मां के समान और कौन

किसी गांव में एक महिला रहती थी। उसका एक बेटा था। बेटे के अलावा उसका और कोई नहीं था। जिस समय की यह कहानी है, उस समय पशु-पक्षियों का मांस खाकर लोग जीवन यापन करते थे। इसी कारण माता-पिता बचपन से ही अपने बच्चों को धनुष-तीर से शिकार करना सिखाया करते थे। बच्चे भी धनुष-तीर से जंगलों में शिकार करना सीखते थे। बड़े होकर वे कुशल शिकारी बन जाते थे।

उस महिला का बेटा भी बड़ा हो रहा था। उसकी मां भी उसे भाला, दाव और धनुष-तीर चलाना सिखाती थी। बेटा भी जोश और लगन के साथ सीखता था। थोड़े ही दिन में उसने निशाना लगाना सीख लिया। उसने दाव से पेड़-पौधे काटना भी सीख लिया था। नीचे खड़े-खड़े पेड़ पर बैठे हुए पक्षी पर निशाना साधना भी उसने सीख लिया था। धीरे-धीरे शिकारी के सारे गुण उसमें प्रकट होने लगे।

वह जंगलों में घूम-फिरकर शिकार करता। पेड़ों की कोटरों से चिड़ियों के बच्चों और अण्डों को निकालकर अपने झोले में डालते हुए उसे बहुत खुशी मिलती थी। इसके लिए सुबह से शाम तक वह जंगल की खाक छानता फिरता।  

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